शहरी विकास का मूलमंत्र
मिस्त्र जैसा देश भी काहिरा को बचाने के लिए 20 नए शहर बसा रहा है, लेकिन भारत में इस बारे में कोई कुछ सोचने के लिए तैयार नहीं
दैनिक जागरण, बुधवार 18 फरवरी 2009,
चीन के नानजिंग में चौथे वर्ल्ड अर्बन फोरम में शहरों के अनियोजित विकास और इससे पैदा होने वाली समस्याओं पर विचार किया गया था। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने स्पष्ट कहा कि शहरीकरण की यही स्थिति रही तो 2030 तक दुनिया में दो अरब से ज्यादा लोग झुग्गी-झोपडि़यों में रह रहे होंगे। शहरों के विकास की एक सीमा होती है। इसके बाद ये दम तोड़ने लगते हैं। भारत में तो स्थिति खास तौर से विकराल होती जा रही है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलूर आदि महानगरों को तो छोडि़ए, कानपुर, धनबाद, पटना, जबलपुर, कोयंबटूर, पुणे, इंदौर, हैदराबाद जैसे मध्यम दर्जे के शहरों की हालत भी बिगड़ती जा रही है। शहरों की आबादी बेतहाशा बढ़ती जा रही है, लेकिन उस अनुपात में नागरिक सुविधाओं का विकास नहीं हो पा रहा है। समाजशास्ति्रयों के अनुसार शहरीकरण के दो प्रमुख कारण आकर्षण और मजबूरी हैं। बहुत से लोग शहर की सुविधाओं और आकर्षण के कारण शहर की ओर खिंचे चले आते हैं और अनेक लोग गांव की गरीबी और भुखमरी से त्रस्त होकर मजबूरी में रोजगार और जीवनयापन की खोज में शहर पहुंचते हैं। हालांकि शहर में भी उनकी हालत खस्ता ही रहती है। अक्टूबर 200 में इंटरनेशनल फूड पालिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट की वैश्विक भूख सूचकांक रिपोर्ट आई थी। इसके अनुसार वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की स्थिति सबसे नीचे के देशों में है। यही भूख और गरीबी उन्हें शहर की तरफ धकेलती है। यह हमारे लिए शर्म के साथ-साथ दुख की बात भी है। रोजगार के अलावा शहर जिस वजह से आकर्षित करते हैं उनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, नागरिक सुविधाएं आदि प्रमुख हैं। देश की अनेक समस्याएं बेलगाम शहरी विकास के इसी माडल का नतीजा हैं। भारत की राजधानी राजनीति और शासन का केंद्र होने के साथ-साथ शिक्षा, व्यापार, स्वास्थ्य, कला, खेल, व्यापार और अन्य अनेक गतिविधियों का केंद्र है। अमेरिका या यूरोप के देशों की ओर नजर दौड़ाएं तो बिल्कुल अलग तस्वीर नजर आती है। इन देशों में राजनीति, व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सभी गतिविधियों के केंद्र कुछ प्रमुख शहरों में न सिमटकर अलग-अलग शहरों में स्थापित करने की कामयाब कोशिश की गई है। इसको इस रूप में समझें कि न्यूयार्क सिटी, लास एंजिल्स, शिकागो, ह्यूस्टन, लास वेगास आदि कोई भी शहर राज्य की राजधानी नहीं है। और भी दिलचस्प बात यह है कि पूरे देश की राजधानी वाशिंगटन का तो बडे़ शहरों के सूची में 27वां स्थान है। राज्यों की राजधानियां छोटे-छोटे शहरों में हैं। उदाहरण के लिए न्यूयार्क राज्य में पूरी दुनिया के व्यवसायिक केंद्र न्यूयार्क सिटी होने के बावजूद इसकी राजधानी अलबनी है। इसी तरह इलिनाय राज्य में शिकागो है, किंतु इसकी राजधानी स्पि्रंगफील्ड है। कैलिफोर्निया में लास एंजिल्स है, किंतु इसकी राजधानी सेक्रामेंटो है। फिर इसी तरह शिक्षा के केंद्रों को देखें तो देश के उत्कृष्ट विश्वविद्यालय अपेक्षाकृत छोटे शहरों में हैं। दुनिया का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय हारवर्ड यूनिवर्सिटी मैसाचुसेट्स राज्य के कैंब्रिज शहर में है तो प्रिंसटन यूनिवर्सिटी न्यूजर्सी राज्य के प्रिंसटन शहर में। इसी प्रकार न्यूजर्सी सबसे बड़ा शहर है, जबकि राजधानी ट्रेनतौन है। उसी तरह येल यूनिवर्सिटी कनेक्टिकट राज्य में है, जहां की राजधानी हार्टफोर्ड है और सबसे बड़ा शहर है ब्रिजपोर्ट। इसी तरह मिशिगन की राजधानी लानसिंग है, जबकि मिशिगन यूनिवर्सिटी ऐन आर्बर में है। यहां का सबसे बड़ा शहर डेट्राइट है। यहां बता देना जरूरी है कि मैं जिन विश्वविद्यालयों का नाम ले रहा हूं उनके छोटी जगहों में स्थित होने का मतलब यह नहीं है कि वे साधारण या निम्न स्तर के विश्वविद्यालय हैं, बल्कि वे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से है। इनके अलावा बहुत बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय अन्य शहरों में भी फैले हुए हैं। इसी तरह स्वास्थ्य के उच्च केंद्र और श्रेष्ठ अस्पताल भी अनेक जगहों पर फैले हुए हैं। यही स्थिति खेलों आदि की भी है। कहने का तात्पर्य यह है कि चीजों को इस तरह से बसाया गया कि शिक्षा, राजनीति, व्यापार, स्वास्थ्य आदि के केंद्र अलग-अलग शहरों में हैं। इसका फायदा यह हुआ कि कुछ ही शहरों का अंधाधुंध विस्तार होने के बजाय विकास का विकेंद्रीकरण हो गया। अर्थात आबादी का संकेंद्रण एक ही जगह न रहा और चतुर्दिक विकास हुआ। छोटे-छोटे कस्बों तक को विकास से जोड़ा गया है। मैं अमेरिका में जिस जगह हूं वह एक छोटा सा कस्बा है। इसकी आबादी महज साठ हजार है, लेकिन यह कस्बा विकास की दृष्टि से किसी भी बड़े शहर से कम नहीं है। पूरा कस्बा केवल यहां की यूनिवर्सिटी की वजह से जाना जाता है। पूरी दुनिया से यहां छात्र पढ़ने आते हैं। दूसरी ओर हमारे देश में उच्च वर्ग को कोई परेशानी न हो, किसी भी चीज के लिए उन्हें कहीं दूर न जाना पड़े, इसलिए सारे विकास को एक ही जगह पर केंद्रित कर दिया गया है। गांवों, कस्बों, और छोटे शहरों में आम लोग चाहे जितने कष्ट में रहें या उन्हें मजबूरी में बड़े शहरों में आकर स्लमडाग की जिंदगी जीनी पड़े, मिलियनेयर तो वे फिल्मों और परीकथाओं में ही बन सकते हैं। 1950 और 1960 के दशक में इंग्लैंड और फ्रांस ने लंदन और पेरिस को बचाने और नियोजित विकास के लिए बड़ी संख्या में नए शहर बसाए। और तो और मिस्त्र जैसा देश भी राजधानी काहिरा को बचाने के लिए 20 नए शहर बसा रहा है, लेकिन भारत में इस बारे में कोई कुछ सोचने को तैयार नहीं। आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य, कला, खेल और अन्य सभी गतिविधियों के केंद्र बड़े शहर ही हैं। पहले ही आबादी का बोझ उठाने में इन शहरों के पांव कांप रहे हैं। अब और बोझ ये बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे। इसके साथ-साथ वहां जीवन की लागत और खर्च भी बढ़ता जाता है, जिससे आम जनता बेहाल रहती है। दूसरी ओर अन्य क्षेत्र विकास से वंचित रह जाते हैं। (लेखक कैलिफोर्निया विवि में प्राध्यापक हैं)
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